सुप्रीम कोर्ट भारतीय न्यायिक प्रणाली का सबसे उच्च न्यायिक संस्थान है। इसका मुख्य कार्य भारतीय संविधान की रक्षा करना, संविधानिक अधिकारों का प्रकट करना और उन्हें संरक्षित करना है। सुप्रीम कोर्ट को न्यायपालिका के त्रिकोणीय विभाजन में स्थान दिया गया है जिसमें यह कानून और न्याय के अनुपालन, न्यायाधीशों की नियुक्ति और न्यायिक नीतियों का आवलोकन करता है।

भारतीय संविधान के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का गठन भारतीय संविधान के भाग वी के अंतर्गत हुआ है। यह कोर्ट भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है। सुप्रीम कोर्ट का गठन 28 जनवरी 1950 को हुआ था, जो संविधान के प्रारंभिक अनुच्छेदों के अनुसार होता है। इसका मुख्य कार्य भारतीय संविधान की रक्षा और न्यायपालिका के स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।

सुप्रीम कोर्ट के कार्य भारतीय संविधान द्वारा संज्ञाए गए हैं और उनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. न्यायपालिका की रक्षा: सुप्रीम कोर्ट का मुख्य कार्य भारतीय संविधान की रक्षा करना है। यह कोर्ट संविधान के विरुद्ध होने वाली किसी भी क्रिया या नियम को अवैध या असंवैधानिक ठहराता है।
  2. न्यायिक निर्णय: सुप्रीम कोर्ट न्यायिक निर्णय देने का अधिकार रखता है। यह निर्णय उच्च न्यायालय के माध्यम से दिए जाते हैं और इन्हें संविधान और कानून के आधार पर लिया जाता है।
  3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा: सुप्रीम कोर्ट का काम भारतीय नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करना है। यह आपत्ति या अन्य मुद्दों पर सुनवाई करता है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं।
  4. न्यायिक नीतियों का स्वीकृति: सुप्रीम कोर्ट को भारतीय संविधान और कानून के साथ संगत न्यायिक नीतियों का स्वीकृति देने का अधिकार है।
  5. संविधानिक प्रश्नों का निर्धारण: सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अन्य निर्धारणों के संबंध में निर्णय देने का भी अधिकार है। यह निर्णय राष्ट्रीय महत्वपूर्णता के मुद्दों पर होते हैं।

ये कुछ मुख्य कार्य हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के अन्य कार्य भी हैं जो भारतीय संविधान और कानून द्वारा संज्ञाए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट की शक्ति उसके कानूनी और संविधानिक प्राधिकारों से प्राप्त होती है। इसकी मुख्य शक्ति कुछ प्रमुख क्षेत्रों में निहित होती है:

  1. संविधान की रक्षा: सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख शक्ति भारतीय संविधान की रक्षा करना है। वह इसे पारित और अनुपालन करने का आधिकार रखती है और किसी भी क्रिया या नियम को असंवैधानिक ठहराती है जो संविधान के खिलाफ हो।
  2. न्यायिक निर्णय: सुप्रीम कोर्ट की अन्य महत्वपूर्ण शक्ति न्यायिक निर्णय देने की है। यह कोर्ट कानूनी मुद्दों पर निर्णय देता है और इसे संविधान और कानून के आधार पर लेता है।
  3. न्यायिक नीतियों का स्वीकृति: सुप्रीम कोर्ट को भारतीय संविधान और कानून के साथ संगत न्यायिक नीतियों का स्वीकृति देने का अधिकार है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया संविधान और कानून के साथ अनुरूप है।
  4. संविधानिक प्रश्नों का निर्धारण: सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अन्य निर्धारणों के संबंध में निर्णय देने का भी अधिकार है। यह निर्णय राष्ट्रीय महत्वपूर्णता के मुद्दों पर होते हैं।

इन शक्तियों के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट भारतीय न्याय प्रणाली के स्थापना और न्याय की प्रदान करता है। इसे समाज के सभी वर्गों के लिए न्याय और समानता की सच्ची स्थापना का अधिकार है।

भारतीय सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उन्हें न्यायिक पदों पर नियुक्त किया जाता है, जिनमें संविधान ने प्रदान की गई नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करते हुए। जजों की नियुक्ति के लिए उनके योग्यता, न्यायिक अनुभव, और नैतिकता का महत्वपूर्ण रोल होता है। उनका कार्यकाल निर्दिष्ट समयावधि का होता है, जो न्यायिक नियमों के अनुसार होती है।

सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया भारतीय संविधान द्वारा संज्ञाए गए हैं। अगर किसी जज के चरित्र या कार्यक्षमता पर संदेह होता है, तो संविधान के अनुसार, एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से उन्हें हटाया जा सकता है। इस प्रक्रिया को विशेष न्यायिक संविधानीय प्रक्रिया या इम्पीचमेंट कहा जाता है। इसमें संसद द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाता है जिसमें जज को आरोपों के खिलाफ सुनवाई दी जाती है और उसका फैसला किया जाता है कि क्या उन्हें हटाया जाना चाहिए या नहीं। इस प्रक्रिया को प्रारंभ करने के लिए एक विशेष अधिवेशन का आयोजन किया जाता है, जिसमें संसद के सदस्यों का बहुमत से निर्धारण होता है। अगर जज के खिलाफ आरोप साबित होते हैं तो वे हटाए जा सकते हैं।

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