संबिधान एक देश के नियमों, संरचना और शासन की आधारशिला होता है। यह देश के लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों को स्थापित करता है और सरकार की संरचना और कार्यप्रणाली को निर्धारित करता है।
संबिधान में विभिन्न विषयों पर नियम और दिशानिर्देश होते हैं, जैसे नागरिकों के अधिकार, सरकार की संरचना, शासन की प्रक्रिया, विभाजन और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि। यह एक देश के नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण विधि दस्तावेज़ होता है जो उनके अधिकार और कर्तव्यों को स्थापित करता है।
संबिधान में नागरिकों को विभिन्न अधिकार और सुरक्षा प्रदान किए जाते हैं। इनमें समानता, न्याय, अधिकारों की रक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, विचलन और भाषा के अधिकार, स्वतंत्रता और जीवन के हक शामिल हो सकते हैं। ये अधिकार संविदा द्वारा सुनिश्चित किए जाते हैं और सरकार के द्वारा प्रावधान किए जाने चाहिए।
भारतीय संविधान को ड्राफ्ट करने के लिए भारतीय संविधान सभा का गठन किया गया था। इस सभा में भारत के विभिन्न राज्यों और समाज के प्रतिनिधियों के सदस्य शामिल थे, जिन्होंने संविधान के लिए निर्णायक विचार प्रस्तुत किए। ड्राफ्ट को संविधान सभा के अंतिम रूप में स्वीकृति दी गई, जो 26 नवंबर 1949 को हुई थी।
संविधान एक देश के सरकार की शक्तियों को सीमित और परिभाषित करता है। यह साधारणत: विभागीय और सांसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से सरकार के शक्तियों को बनाए रखने का प्रावधान करता है, ताकि सरकार अपने कार्यों को केवल संविधान द्वारा प्राप्त अधिकारों के मर्यादा में ही करे। इसका मकसद सरकार को सामाजिक न्याय, समानता, और सार्वभौमिक हित की दिशा में रखना होता है।
भारतीय संविधान में निर्धारित मूल अधिकार हैं, जिन्हें अनुच्छेद 14 से 32 तक के अंतर्गत विस्तार से दिया गया है। इनमें शामिल हैं समानता, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, जीवन, लिबर्टी, प्रॉपर्टी, और धर्म के स्वतंत्रता के अधिकार। ये अधिकार भारतीय नागरिकों को दिए गए हैं और सरकार को इनका पालन करना अनिवार्य है।
आर्टिकल 22 भारतीय संविधान के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हक है, जो हिरासत में रखे गए व्यक्ति के लिए उपलब्ध होता है। इसके अंतर्गत विचारक, साहित्यकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीविका के हक्क को संरक्षित किया गया है। इस आर्टिकल के तहत किसी को बिना किसी अपराध के हिरासत में नहीं लिया जा सकता है, यदि यह आरोपी के संरक्षित अधिकारों की दृढ़ संज्ञाना के बिना नहीं होता।
अनुच्छेद 32 प्रत्येक व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार देता है। इसका मतलब यह है कि अगर किसी को लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो वे राहत के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं।